Haryana GK इतिहास विषय
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🎬 *71वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2025*
📅 *आयोजन तिथि*: 1 अगस्त 2025
📍 *स्थान*: नई दिल्ली
➤ *राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का आयोजन*
*➭ यह पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किए जाते हैं।*
*➭ सूचना और प्रसारण मंत्रालय के फिल्म समारोह निदेशालय द्वारा आयोजित किए जाते हैं।*
*➭ 1954 में स्थापित, ये भारत के सबसे प्रतिष्ठित और बहुप्रतीक्षित फिल्म पुरस्कार हैं।*
➤ *71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2025 विजेता सूची*
🔺 *सर्वश्रेष्ठ अभिनेता* – शाहरुख खान (जवान) और विक्रांत मैसी (12वीं फेल)
🔺 *सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री* – रानी मुखर्जी (मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे)
🔺 *सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म* – 12वीं फेल
🔺 *सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म* – कटहल: अ जैकफ्रूट मिस्ट्री
🔺 *सर्वाधिक लोकप्रिय फिल्म* – रॉकी और रानी की प्रेम कहानी
🔺 *सर्वश्रेष्ठ निर्देशन में डेब्यू फिल्म* – आशीष बेंडे (आत्मपॉम्फ्लेट)
🔺 *सर्वश्रेष्ठ फिल्म (तेलुगू)* – हनुमान
🔺 *सर्वश्रेष्ठ निर्देशन* – सुदीप्तो सेन (द केरल स्टोरी)
मोहम्मद गौरी, पृथ्वीराज चौहान और जयचंद का इतिहास भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण और नाटकीय अध्यायों में से एक है। इनके बीच के युद्ध और रिश्तों ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। यह इतिहास कई तथ्यों और लोककथाओं से भरा है। आइए इन सभी पहलुओं पर विस्तार से जानते हैं।
पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के बीच का किस्सा
पृथ्वीराज चौहान (दिल्ली और अजमेर के शासक) और जयचंद (कन्नौज के राजा) दोनों ही शक्तिशाली राजपूत शासक थे। उनके बीच की दुश्मनी का मुख्य कारण जयचंद की पुत्री संयोगिता थीं।
* प्रेम कहानी: इतिहास के अनुसार, पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता एक-दूसरे से प्रेम करते थे।
* स्वयंवर: जयचंद ने अपनी पुत्री के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। उसने सभी राजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए उन्हें नहीं बुलाया। इसके बजाय, उसने पृथ्वीराज की मूर्ति को द्वारपाल के रूप में स्वयंवर के द्वार पर खड़ा करवाया।
* अपहरण: संयोगिता ने सभी राजाओं को अस्वीकार कर दिया और पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में वरमाला डाल दी। इसी समय, पृथ्वीराज चौहान अपनी सेना के साथ आए और भरे दरबार से संयोगिता का अपहरण कर लिया और उनसे विवाह किया।
इस घटना ने जयचंद को बहुत अपमानित महसूस कराया और उनकी पृथ्वीराज के प्रति दुश्मनी और बढ़ गई। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी दुश्मनी के कारण जयचंद ने पृथ्वीराज को हराने के लिए मोहम्मद गौरी का साथ दिया था।
मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच के युद्ध
मोहम्मद गौरी एक अफगान शासक था जिसने भारत पर आक्रमण करने का लक्ष्य रखा था। उसके और पृथ्वीराज चौहान के बीच दो प्रमुख युद्ध हुए, जिन्हें तराइन का युद्ध कहा जाता है। ये युद्ध हरियाणा के करनाल के पास तराइन नामक स्थान पर हुए थे।
1. तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.)
* स्थान: तराइन (आधुनिक तरौड़ी, हरियाणा)।
* पक्ष: पृथ्वीराज चौहान की सेना और मोहम्मद गौरी की सेना।
* परिणाम: इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना ने मोहम्मद गौरी को करारी शिकस्त दी। गौरी बुरी तरह घायल हुआ और उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। पृथ्वीराज ने उदारता दिखाते हुए उसका पीछा नहीं किया, जिसे कुछ इतिहासकार उनकी बड़ी भूल मानते हैं।
2. तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.)
* स्थान: तराइन।
* पक्ष: पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी।
* परिणाम: प्रथम युद्ध की हार का बदला लेने के लिए गौरी ने एक साल बाद फिर से हमला किया। इस बार उसने पूरी तैयारी के साथ हमला किया। माना जाता है कि जयचंद ने इस युद्ध में गौरी का साथ दिया था।
* गौरी की रणनीति: गौरी ने छल और नई युद्ध रणनीति का सहारा लिया। उसने रात में पृथ्वीराज की सेना पर हमला किया और उन्हें हैरान कर दिया। इसके अलावा, उसकी घुड़सवार सेना और तीरंदाजों ने राजपूत सेना को काफी नुकसान पहुंचाया।
* पृथ्वीराज की हार: इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया। यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ, क्योंकि इसके बाद भारत में मुस्लिम शासन का रास्ता खुल गया।
मोहम्मद गौरी और जयचंद के बीच का युद्ध
तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद, गौरी ने अपने रास्ते में आने वाली अन्य शक्तियों को खत्म करने का फैसला किया। उसकी अगली चुनौती जयचंद थे।
* चंदावर का युद्ध (1194 ई.)
* स्थान: चंदावर (आधुनिक फ़िरोज़ाबाद के पास)।
* पक्ष: मोहम्मद गौरी और जयचंद।
* परिणाम: इस युद्ध में गौरी ने जयचंद को पराजित किया। जयचंद मारे गए और उनकी सेना हार गई। इस युद्ध के बाद गौरी ने कन्नौज और उसके आसपास के क्षेत्रों पर अपना कब्जा जमा लिया।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य और लोककथाएं
* पृथ्वीराज की मृत्यु: तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में कई अलग-अलग मत हैं।
* कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, पृथ्वीराज को तुरंत मार दिया गया था।
* एक अन्य लोकप्रिय लोककथा, जिसे पृथ्वीराज रासो में वर्णित किया गया है, के अनुसार, पृथ्वीराज को बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया था। वहां उन्होंने अपने दरबारी कवि चंदबरदाई के कहने पर, एक शब्दभेदी बाण से गौरी को मार डाला था। यह कहानी बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन इसे ऐतिहासिक रूप से पूरी तरह से प्रमाणित नहीं माना जाता।
* जयचंद की उपाधि: जयचंद को अक्सर "भारत का गद्दार" कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ गौरी का साथ दिया था। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जयचंद ने गौरी का साथ नहीं दिया था और यह सिर्फ एक लोककथा है। उनका कहना है कि दोनों शासक अपने-अपने राज्य के स्वतंत्र शासक थे और उनके बीच प्रतिद्वंदिता होना स्वाभाविक था।
इन तीनों शासकों के जीवन, युद्धों और रिश्तों ने भारतीय इतिहास को गहराई से प्रभावित किया। इन घटनाओं ने भारत में इस्लामी शासन की नींव रखी और एक नए युग की शुरुआत की।
शब्दभेदी बाण वाली घटना, जिसमें पृथ्वीराज चौहान ने अंधे होकर मोहम्मद गौरी को मारा था, एक बहुत ही लोकप्रिय कहानी है। यह मुख्य रूप से चंदबरदाई द्वारा रचित महाकाव्य "पृथ्वीराज रासो" पर आधारित है। हालांकि, अधिकांश इतिहासकार इस कहानी को काल्पनिक या अतिशयोक्तिपूर्ण मानते हैं। इसके पीछे कई आधार हैं:
1. समकालीन ऐतिहासिक स्रोतों का अभाव
* गौरी के समकालीन इतिहासकार: मोहम्मद गौरी के साथ आए या उसके समय के इतिहासकारों, जैसे मिन्हाज-उस-सिराज जुजजानी ने अपनी पुस्तक "तबकात-ए-नासिरी" में तराइन के युद्ध और उसके बाद की घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया है। इस किताब में कहीं भी पृथ्वीराज द्वारा गौरी को मारे जाने का उल्लेख नहीं है। बल्कि इसमें लिखा है कि पृथ्वीराज को युद्ध के मैदान में बंदी बना लिया गया था और कुछ समय बाद उन्हें मार दिया गया।
* अन्य मुस्लिम स्रोत: उस समय के अन्य मुस्लिम इतिहासकारों ने भी इसी तरह की जानकारी दी है, जिनमें गौरी की मृत्यु का कारण खोखरों के साथ एक झड़प में घायल होना बताया गया है, न कि पृथ्वीराज के बाण से।
2. पृथ्वीराज रासो की रचना का समय
* रचना का काल: "पृथ्वीराज रासो" की रचना 16वीं शताब्दी या उससे भी बाद में हुई मानी जाती है। यह घटना के समय से सैकड़ों साल बाद की है।
* अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन: रासो में कई स्थानों और घटनाओं का अतिशयोक्तिपूर्ण और काल्पनिक वर्णन मिलता है, जो इसे एक ऐतिहासिक दस्तावेज की बजाय एक साहित्यिक कृति के रूप में स्थापित करता है। कवि ने अपने नायक की वीरता को बढ़ाने के लिए इस कहानी को गढ़ा हो सकता है।
3. पुरातात्विक साक्ष्य और शिलालेख
* गौरी की मृत्यु: गौरी की मृत्यु का स्थान और कारण ऐतिहासिक रूप से स्थापित हैं। उसकी मृत्यु 1206 ईस्वी में हुई थी, जब वह खोखरों के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था। उसे वर्तमान पाकिस्तान के झेलम नदी के पास दम्यक नामक स्थान पर दफनाया गया था। यह तथ्य इस बात का खंडन करता है कि उसे पृथ्वीराज ने मारा था।
* पृथ्वीराज के सिक्के: कुछ सिक्के और शिलालेख पृथ्वीराज की हार के बाद भी उनके नाम से जारी किए गए थे, लेकिन उन पर "श्री मुहम्मद बिन शाम" भी लिखा हुआ था। इसका मतलब यह हो सकता है कि उन्हें कुछ समय के लिए गौरी के अधीन शासक के रूप में रखा गया था, लेकिन बाद में उन्होंने विद्रोह किया और उन्हें मार दिया गया।
4. साहित्यिक उद्देश्य
* नायक का महिमामंडन: "पृथ्वीराज रासो" एक महाकाव्य है जिसका मुख्य उद्देश्य अपने नायक पृथ्वीराज चौहान की महानता, वीरता और बलिदान को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना था। शब्दभेदी बाण की कहानी इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक आदर्श कथा थी, जो एक हारे हुए नायक को अंतिम क्षणों में भी विजयी दिखाती है।
* मनोरंजन और प्रेरणा: लोककथाएं और महाकाव्य अक्सर ऐतिहासिक तथ्यों की बजाय मनोरंजन और प्रेरणा पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। यह कहानी लोगों के बीच पृथ्वीराज की वीरता को बनाए रखने और उन्हें प्रेरणा देने का काम करती रही है।
निष्कर्ष
शब्दभेदी बाण वाली कहानी एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं, बल्कि एक लोकप्रिय लोककथा है। यह पृथ्वीराज चौहान की वीरता को दर्शाती है, लेकिन इसके ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव है। इतिहासकारों के बीच इस बात पर सर्वसम्मति है कि पृथ्वीराज की मृत्यु तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद हुई थी, और मोहम्मद गौरी की मृत्यु उसके कई साल बाद किसी अन्य कारण से हुई थी। यह कहानी साहित्य और लोककथाओं का हिस्सा है, लेकिन ऐतिहासिक विश्लेषण के लिए इसे विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।

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