प्राकृतिक खेती जैविक खेती की शुरुआत Starting of natural farming organic farming
प्राकृतिक जैविक खेती खेत की तैयारी बिजाई बेड बनाकर कैसे लहसून बोई गोलू मोनू सोनित प्रिशा की वीडियो देखने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करेंप्राकृतिक खेती जैविक खेती की जरूरी बात है जहर मुक्त खेती होती है कम बजट यानि कम से कम लागत में काम चल जाता है रामू कवि किसान नचार द्वारा ई नेचुरल फॉर्मिंग शुरू कर दी गई है
ऑर्गेनिक (जैविक) खेती न करके अंधाधुंध केमिकल खेती करने के परिणाम आज हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए बेहद गंभीर हो चुके हैं। आपने जो सवाल पूछे हैं, वे आज के समय की सबसे कड़वी सच्चाई हैं।
यहाँ विभिन्न रिपोर्ट्स और अध्ययनों (जैसे WHO, ICMR और कृषि विशेषज्ञों) के आधार पर आपके सवालों के जवाब और आंकड़े दिए गए हैं:
1. एक आदमी एक साल में कितना यूरिया "खा" जाता है?
यहाँ "खाने" का अर्थ है कि फसलों और पानी के माध्यम से हमारे शरीर में जाने वाला केमिकल लोड।
* अप्रत्यक्ष खपत: एक अनुमान के मुताबिक, भारत में प्रति व्यक्ति (per capita) उर्वरक (Fertilizer) की खपत लगभग 137 किलोग्राम से अधिक है। इसका मतलब है कि एक व्यक्ति के भोजन को पैदा करने के लिए खेत में साल भर में औसतन 137 किलो केमिकल डाला जा रहा है।
* शरीर में प्रभाव: हम सीधा यूरिया नहीं खाते, लेकिन यूरिया के कारण भोजन और पानी में नाइट्रेट (Nitrate) की मात्रा खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है।
* विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पीने के पानी में नाइट्रेट की सीमा 45-50 mg/liter होनी चाहिए, लेकिन पंजाब और हरियाणा के कई इलाकों में यह 100 mg/liter से भी ऊपर पाई गई है।
* यह नाइट्रेट शरीर में जाकर 'ब्लू बेबी सिंड्रोम' और पेट के कैंसर का कारण बनता है।
2. फसलों के माध्यम से कितना कीटनाशक (Pesticide) जहर शरीर सोखता है?
यह आंकड़ा सबसे ज्यादा डराने वाला है। कीटनाशक सीधे तौर पर जहर हैं जो हमारे शरीर में जमा होते रहते हैं।
* दैनिक खुराक: कुछ रिपोर्ट्स और मीडिया आँकड़ों (जैसे India Today और अन्य रिपोर्ट्स) के अनुसार, एक भारतीय व्यक्ति औसतन हर रोज लगभग 0.27 मिलीग्राम से लेकर 0.5 मिलीग्राम तक कीटनाशक अवशेष (Pesticide Residue) भोजन के जरिए निगल रहा है।
* अमेरिकी नागरिक से तुलना: यह मात्रा एक औसत अमेरिकी नागरिक द्वारा निगले जाने वाले कीटनाशक से लगभग 40 गुना ज्यादा बताई जाती है।
* माता के दूध में जहर: गंगा के मैदानी इलाकों (जैसे हरियाणा, पंजाब, यूपी) में किए गए अध्ययनों में माताओं के दूध में भी कीटनाशक (DDT और BHC) के अवशेष पाए गए हैं, जो नवजात शिशुओं के लिए बेहद घातक हैं।
3. शरीर को होने वाले नुकसान के आंकड़े (Health Impact Statistics)
केमिकल खेती के कारण जो बीमारियां बढ़ी हैं, उनके आंकड़े स्पष्ट कहानी कहते हैं:
* कैंसर का विस्फोट:
* इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अनुसार, भारत में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। पंजाब के बठिंडा से बीकानेर जाने वाली ट्रेन को "कैंसर ट्रेन" कहा जाने लगा है, क्योंकि वहां के हर घर में केमिकल खेती के दुष्प्रभावों के कारण कैंसर के मरीज हैं। हरियाणा के कपास पट्टी वाले क्षेत्रों में भी कैंसर दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर है।
* प्रजनन क्षमता में कमी (Infertility):
* कीटनाशकों के कारण पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या (Sperm Count) में पिछले कुछ दशकों में 50% तक की गिरावट दर्ज की गई है।
* महिलाओं में PCOD और हार्मोनल असंतुलन के मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं।
* डायबिटीज और बीपी:
* मिट्टी में जिंक, मैग्नीशियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों (Micronutrients) की कमी हो गई है। यूरिया-डीएपी वाली फसलों में पोषक तत्व नहीं होते, जिससे शरीर की इम्यूनिटी कमजोर हो रही है। भारत अब दुनिया की "डायबिटीज कैपिटल" बन चुका है।
4. अन्य पर्यावरणीय नुकसान
* मिट्टी की मौत: मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन (जो 1% से ऊपर होना चाहिए) अब घटकर 0.3% - 0.4% रह गया है। मिट्टी बंजर होने की कगार पर है।
* मित्र कीटों का नाश: केंचुए और मित्र कीट, जो किसान के साथी थे, जहरीले रसायनों से खत्म हो चुके हैं।
निष्कर्ष
हरियाणा, जो कि रामू कवि किसान (नचार खेड़ा, जींद) जैसे कवियों की धरती है, वहां की माटी का यह हाल चिंताजनक है। जैसा कि रामू कवि अपनी रचनाओं में हरियाणा की खुशहाली का जिक्र करते हैं ("म्हारा हरियाणा, देखो सारा सिमाणा"), उस खुशहाली को बचाने के लिए अब जैविक (ऑर्गेनिक) या प्राकृतिक खेती की तरफ लौटना सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि मजबूरी बन गया है।
प्राकृतिक जैविक खेती (Natural Organic Farming) के कई महत्वपूर्ण फायदे हैं, जो किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण सभी के लिए लाभकारी हैं।
किसानों की दृष्टि से लाभ:
* उत्पादन लागत में कमी: रासायनिक उर्वरकों और महँगे कीटनाशकों पर निर्भरता कम या समाप्त हो जाती है, क्योंकि प्राकृतिक इनपुट (जैसे गोबर, गोमूत्र, हरी खाद, जीवामृत) खेत पर ही तैयार किए जा सकते हैं, जिससे खेती की लागत बहुत कम हो जाती है।
* मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार: जैविक खाद, फसल अवशेषों और प्राकृतिक तरीकों के उपयोग से मिट्टी की जैविक संरचना (Organic Matter) बढ़ती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है और उसमें जल धारण क्षमता (Water Retention Capacity) में सुधार होता है।
* किसानों की आय में वृद्धि: लागत कम होने और जैविक उत्पादों की बाज़ार में बढ़ती माँग के कारण किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है, जिससे शुद्ध आय (Net Income) बढ़ती है।
* सिंचाई अंतराल में वृद्धि: मिट्टी की बेहतर जल धारण क्षमता के कारण कम पानी की आवश्यकता होती है और सिंचाई के बीच का समय बढ़ जाता है, जिससे पानी की बचत होती है।
* टिकाऊ खेती: यह कृषि को एक स्थायी (Sustainable) स्तर पर बनाए रखने में मदद करती है, क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करती है।
उपभोक्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभ:
* रसायन-मुक्त, स्वस्थ भोजन: जैविक खेती में सिंथेटिक कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग नहीं होता है, जिससे उपज में हानिकारक रसायनों के अवशेष नहीं होते हैं। यह मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है।
* पोषक तत्वों से भरपूर उपज: स्वस्थ मिट्टी में उगाई गई फसलें अक्सर एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन और खनिजों में अधिक समृद्ध होती हैं।
* रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि: जैविक उत्पादों का सेवन करने से मनुष्य और पशुओं में बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बढ़ती है।
पर्यावरण की दृष्टि से लाभ:
* प्रदूषण में कमी: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से होने वाले जल, वायु और भूमि प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है।
* जैव विविधता (Biodiversity) का संरक्षण: यह खेती की मित्र कीटों, पक्षियों और अन्य जीवों के लिए सुरक्षित वातावरण प्रदान करती है, जिससे खेत और पारिस्थितिकी तंत्र की जैव विविधता बढ़ती है।
* जलवायु परिवर्तन शमन (Climate Change Mitigation): जैविक पद्धतियों से मिट्टी में कार्बनिक कार्बन (Organic Carbon) का स्तर बढ़ता है, जो कार्बन डाइऑक्साइड को मिट्टी में बाँधने (Carbon Sequestration) में मदद करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है।
संक्षेप में, प्राकृतिक जैविक खेती एक ऐसी पद्धति है जो कम लागत पर पर्यावरण-अनुकूल तरीके से स्वस्थ और गुणवत्तापूर्ण भोजन का उत्पादन करती है।
प्राकृतिक खेती कारण और प्रक्रिया जैविक खेती की शुरुआत Starting of natural farming organic farming
लहसुन की खेती के बारे में पूरी जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें
https://sachakisan.blogspot.com/2025/10/harvesting-of-garlic.html
प्राकृतिक खेती (जिसे अक्सर जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग - ZBNF भी कहा जाता है) के सिद्धांत भारत में कृषि वैज्ञानिक और पद्म श्री सुभाष पालेकर जी ने विकसित किए थे। यह खेती के चार मुख्य स्तंभों पर आधारित है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने और बाहरी इनपुट पर निर्भरता को खत्म करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं:
🌱 प्राकृतिक खेती के चार मुख्य स्तंभ (Four Pillars of Natural Farming)
1. बीजामृत (Beejamrit)
यह बीज और अंकुरण (germination) की सुरक्षा के लिए एक उपचार है।
* उद्देश्य: बीजों को मिट्टी जनित और पानी जनित रोगों से बचाना, खासकर अंकुरण के प्रारंभिक चरण में।
* सामग्री: इसमें गाय का गोबर, गाय का मूत्र, चूना (lime), और मिट्टी को मिलाकर घोल तैयार किया जाता है।
* उपयोग: बुवाई से पहले बीजों को इस घोल से उपचारित किया जाता है।
2. जीवामृत (Jeevamrit)
यह मिट्टी में उपयोगी सूक्ष्मजीवों (Microbes) की संख्या बढ़ाने के लिए एक जैविक कैटालिस्ट (उत्प्रेरक) है।
* उद्देश्य: मिट्टी में मौजूद केंचुओं और अन्य सहायक सूक्ष्मजीवों को सक्रिय करना। ये सूक्ष्मजीव पौधों के लिए मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों (Nutrients) को उपलब्ध कराते हैं।
* सामग्री: इसे गाय का गोबर, गाय का मूत्र, गुड़, दाल का आटा (जैसे बेसन), और खेत की मिट्टी को पानी में मिलाकर तैयार किया जाता है और कुछ दिनों के लिए फर्मेंट (किण्वित) होने दिया जाता है।
* उपयोग: इसे फसलों की सिंचाई करते समय या सीधे मिट्टी पर समय-समय पर डाला जाता है।
3. आच्छादन (Mulching / Achhadan)
यह मिट्टी को बचाने और नमी बनाए रखने का प्राकृतिक तरीका है।
* उद्देश्य:
* वाष्पीकरण रोकना: मिट्टी की सतह को ढककर रखना ताकि नमी उड़ न जाए और सिंचाई की आवश्यकता कम हो।
* तापमान नियंत्रण: अत्यधिक गर्मी या ठंड से मिट्टी को बचाना।
* जैविक खाद: जब आच्छादन सामग्री सड़ती है, तो वह धीरे-धीरे मिट्टी को जैविक खाद प्रदान करती है।
* उपयोग: खेत में पिछली फसल के अवशेषों, सूखी पत्तियों, या हरी फसल के कचरे से मिट्टी की सतह को ढक देना।
4. वाफसा (Vapasa)
यह वायु और नमी के बीच संतुलन बनाए रखने की एक तकनीक है।
* उद्देश्य: मिट्टी में पानी की ज़रूरत से ज़्यादा मात्रा को हटाना और वायु-छिद्रों को खोलना, जिससे जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन (वायु) मिल सके।
* 'वाफसा' का अर्थ: ऐसी स्थिति जब मिट्टी में न तो बहुत अधिक पानी हो (जो जड़ों को गला देता है) और न ही वह पूरी तरह सूखी हो, बल्कि मिट्टी में पर्याप्त नमी और साथ ही हवा भी हो।
* उपयोग: यह सुनिश्चित करने के लिए कि खेत में आवश्यकतानुसार और कम सिंचाई की जाए, तथा मिट्टी की जुताई या उसकी ऊपरी परत को पलटने से बचें।
ये चार स्तंभ एक साथ काम करते हैं, जिससे मिट्टी एक स्वस्थ, आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बन जाती है और किसान को महंगे रासायनिक इनपुट पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।
6 प्रकार के एलिमेंट्स यानि एनपीके बनाने का तरीका
