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02 January 2019
MA History 1st Year Previous exam notes by Ramu Kavi Kissan nachar Khera Jind Haryana Hindustan
Paper number 5 Adhunik Samay Mein Cheen aur Japan ka itihas history of China and Japan in Modern Times
MA इतिहास प्रथम वर्ष पेपर 5 आधुनिक समय में चीन और जापान का इतिहास पाठ 2
प्रथम आंग्ल चीनी युद्ध के कारणों और परिणामों की विवेचना कीजिए
प्रथम अफीम युद्ध में व्यापार और अफीम के योगदान का मूल्यांकन कीजिए
प्रथम अफीम युद्ध जो कि 1839 ईसवी से लेकर 1842 ईस्वी तक अफीम को लेकर ब्रिटेन और चीन के बीच हुआ इसे प्रथम आंग्ल चीनी युद्ध एवं प्रथम अफीम युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। उस वक्त चीन के पास निर्यात करने के लिए बहुत सारी वस्तुएं उपलब्ध थी जैसे रेशम, चाय, चीनी और चीनी मिट्टी के बर्तन तो यूरोपीय देशों ने इन्हीं वस्तुओं को हथियाने के लिए चीन में अफीम के व्यापार को बढ़ावा दिया इसके लिए आंगल चीन युद्ध को बढ़ावा देने के दो मुख्य कारण थे
1. अफीम व्यापार और चीन की व्यापारिक स्थिति - 19वीं शताब्दी में अंग्रेज भारत में अपने पैर जमा चुके थे और अपने प्रभाव को चीन में बढ़ाना चाहते थे तो वहां पर ऐसी वस्तु का खपत करना चाहते थे जो उन्हें भारत में आसानी से उपलब्ध थी तो भारत से अफीम लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से चीन में सप्लाई करने लगे और उन्हें इस से मोटी आमदनी होने लगी और चीन को नुकसान होने लगा
2. चीन में अफीम की तस्करी - ब्रिटेन के व्यापारियों ने चीन में अफीम के प्रचार-प्रसार को बढ़ाकर वहां पर लोगों को इसका आदी बना दिया जिसके कारण चीन को नुकसान हुआ तो चीन ने इस पर कई प्रतिबंध लगा दिए परंतु चोरी-छिपे अंग्रेज व्यापारी अवैध रूप से चीन में अप्लाई करते रहे और वहां के सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेकर अंग्रेजी व्यापारियों की सहायता करते रहे
3. अफीम का व्यापार अन्य देशों के साथ - चीन में अफीम के बढ़ते हुए व्यापार को देखते हुए यूरोपीय देशों के साथ साथ अमेरिका रूस आदि देश भी वहां पर अपना व्यापारिक भविष्य तलाशने लगे जिसे चीन की आय लगातार कम होती रही और राजकोष पर बढ़ता गया चीन की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई
4. चीन द्वारा प्रतिबंध लगाना - चीन की सरकार ने अफीम के आयात निर्यात पर प्रतिबंध लगाया ताकि अर्थव्यवस्था को ठीक किया जा सके तो उन्होंने एक कठोर और इमानदार व्यक्ति लिन-त्सू-हसू को कमिश्नर नियुक्त कर दिया जिसने सभी व्यापारियों पर प्रतिबंध लगा दिया अंग्रेजों और चीन के बीच संबंध बिगड़ गए
5. संधि के प्रयास विफल होना - चीन के शासक और अंग्रेजी व्यापारियों ने आप से संबंधों को बढ़ाने के लिए संधि के प्रयास किए परंतु चीन बिल्कुल भी नहीं झुका और संधि के सारे प्रयास विफल हो गए
6. न्याय क्षेत्र के बारे में तनाव उत्पन्न होना - अफीम व्यापार को लेकर चीन और अंग्रेजो के बीच लगातार तनाव बढ़ता जा रहा था तो इस दौरान एक घटना घटित हो गई। कुछ अंग्रेज व्यापारियों ने चीन के एक ग्रामीण को मार डाला इस पर कमिश्नर लिंन तशु हंसू ने ब्रिटेन से अंग्रेज अपराधी पर मुकदमा चलाने की मांग की लेकिन चार्ल्स इलिएट ने उसके मांग को नहीं माना और कहा कि अपराधी पर मुकदमा इंग्लैंड की अदालत में ही चलेगा इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया तो कमिश्नर लीन त्सू हसू ने अंग्रेजों को अनाज देना बंद कर दिया और इस के विरुद्ध अंग्रेजों ने भी कुछ चीनी जलयानों पर हमला कर दिया जब आदमी 1839 में अंग्रेजों और चीनियों के बीच युद्ध का कारण बना।
प्रथम अफीम युद्ध या आंग्ल चीन युद्ध के कुछ मुख्य कारण
हालांकि 1839 में हुए अंग्रेज और तीनों के बीच युद्ध का अफीम के अवैध व्यापार को कारण बताया जाता है परंतु कुछ एक अन्य घटना इसके लिए जिम्मेदार थी
1. अंग्रेजों की साम्राज्यवादी लालसा - अंग्रेज व्यापारी आराम से ही साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के रहे हैं इसीलिए उन्होंने भारत पर अपना कब्जा कर लेने के बाद चीन की ओर रुख किया और वह शुरू से ही विदेशियों के साथ अपमानजनक व्यापार व्यवहार करते रहे जिसके कारण चीन के लोगों में रोष उत्पन्न हो गया
2. सभ्यताओं का आपसी संघर्ष - कुछ इतिहासकारों के अनुसार आंग्ल चीन युद्ध का कारण सभ्यताओं का आपसी संघर्ष भी था जैसे कि एशिया पश्चिम देशवासियों की तुलना में अपने आप को अधिक श्रेष्ठ मानते थे और चीन के लोग भी अपनी संस्कृति सभ्यता प्रगति सामाजिक और राजनीतिक जीवन को यूरोप में भी तुलना में श्रेष्ठ मानते थे जबकि यूरोपीय व्यापारी अपने आप को श्रेष्ठ समझते थे जिससे दोनों में टकराव होना और संभावित था
3. चीन में अफीम व्यापार के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट - ब्रिटेन के व्यापारियों द्वारा चीन में अफीम के व्यापार को बढ़ावा देने से चीन की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई और चीन के सम्राट अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए चीन ने अफीम व्यापार पर प्रतिबंध भी लगाया परंतु विदेशी नहीं माने, वह तस्करी के रूप में और अवैध रूप से अफीम का व्यापार करते रहे जिससे दोनों देशों के संबंधों में टकराव हो गया
4. आपसी अधिकार को बढ़ाने की लालसा - चीन की सरकार नहीं चाहती थी कि कोई भी विदेशी व्यापारी उनके यहां पर आकर व्यापार करें इसलिए उन्होंने अंग्रेजों को कैन्टन के बाहर ही निवास करने की इजाजत दी परंतु अंग्रेज व्यापारी खुले में चीन मेम व्यापार करना चाहते थे
5. को-हांग संस्था के अत्यधिक नियंत्रण का प्रभाव - मंचू वंश के शासन काल में चीन के व्यापारियों को विदेशी व्यापारियों से नहीं मिलने दिया जाता था और उनके बीच एक निगम स्थापित किया गया जिसे कोहांग कहा जाता है इसके अनुसार कोहांग की अनुमति और नियम व शर्तों पर ही आपसी व्यापार होता था और विदेशी व्यापारी सिर्फ अपने जहाज सिर्फ कारखाना या बाहरी ठिकानों पर ही रुक सकते थे
6. व्यापार में होने वाली कठिनाइयां - ब्रिटेन को चीन में व्यापार करने के लिए बहुत सी सुविधाएं चाहिए थी परंतु चीन के लोग समझ गए थे की खुली छूट देने से चीन को और भी आर्थिक हानि उठानी पड़ेगी
7. चीन में प्रचलित प्रथा - चीन में प्रचलित क्योंटाओ प्रथा के अनुसार किसी भी बाहरी व्यक्ति को चीन के राजा के समक्ष झुककर और उनकी प्रथा के अनुसार प्रणाम करना पड़ता था परंतु विदेशी इस प्रथा को व्यर्थ और असभ्य मानते थे तथा व्यापारियों के लिए इसका पालन करना मुश्किल था जिसके कारण आपसी टकराव शुरू हो चुका था
8. व्यापारियों पर अत्यधिक प्रतिबंध - अफीम के व्यापार के कारण चीन को अत्यधिक नुकसान हुआ था इसीलिए चीन की सरकार ने कैंटन के कमिश्नर लिन को अफीम व्यापार पर नियंत्रण के लिए नियुक्त कर दिया जिससे अंग्रेज व्यापारियों में असंतोष पैदा हो गया और 7 जुलाई 1839 को चीन और कुछ अंग्रेज नाविकों के बीच झगड़ा हो गया जिसमें अंग्रेजों ने चीन के एक नागरिक को मौत के घाट उतार दिया और इस पर कैंटीन के कमिश्नर लिन ने ब्रिटेन के व्यापारिक अधीक्षक चार्ल्स इलियट से इस घटना में संबंधित अंग्रेज व्यापारी को चीन के हवाले करने के लिए कहा परंतु इलियट ने लिन की मांग को नहीं माना और तर्क दिया कि इस के लिए अंग्रेजी व्यापारियों पर ब्रिटेन में ही मुकदमा चलेगा और आपसी झगड़े से व्यापारियों पर अत्यधिक कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए जिससे अंग्रेजी व्यापारियों को कैंटन छोड़कर मकाउ जाना पड़ा और वहां मकाउ में भी अंग्रेज व्यापारियों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई तो अंग्रेजी व्यापारियों को हांगकांग में शरण लेनी पड़ी तो उसी समय सितंबर 1839 में कप्तान स्मिथ के नेतृत्व में एक युद्ध जहाज हांगकांग पहुंच गया और इंगलैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री लार्ड पामस्टर्न ने अप्रैल 1840 में ब्रिटिश संसद में चीन के खिलाफ युद्ध के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और दोनों देशों के बीच शुरू हो गया जिसे प्रथम अफीम युद्ध या प्रथम आंगल चीन युद्ध के नाम से जाना जाता है
प्रथम अफीम युद्ध की महत्वपूर्ण घटनाएं
1. पहली लड़ाई - प्रथम अफीम युद्ध की शुरुआत कैंटन से हुई जिसमें ब्रिटेन की सेना ने चीन पर आक्रमण कर कैंटन पर अधिकार कर लिया और कैंटीन के कमिश्नर लिन को अपदस्थ कर दिया तब मंजू वंश के अधिकारी चीशान को ब्रिटेन के व्यापारियों से वार्ता करने के लिए नियुक्त किया
चीन और इंग्लैंड के बीच एक संधि हुई जिसमें
1. हांगकांग बंदरगाह को अंग्रेजों के लिए खोल दिया गया
2. चीन ने अफीम के नुकसान के लिए इंग्लैंड के व्यापारियों को 60 लाख देना स्वीकार किया
3. अंग्रेज प्रतिनिधियों को चीन के प्रतिनिधियों के बराबर मान्यता दी गई
4. अन्य क्षेत्रों में भी अंग्रेज व्यापारियों को आने-जाने जाने की अनुमति दे दी
2. दूसरी लड़ाई - प्रथम अफीम युद्ध होने के बाद अंग्रेजों ने कुछ सुविधाएं प्राप्त कर ली परंतु अंग्रेज व्यापारी इससे संतुष्ट नहीं हुए और ब्रिटिश सरकार ने अधीक्षक इलियट को वापस बुला लिया और उसी स्थान पर सर हेनरी पोंटिगर को मुख्य प्रतिनिधि नियुक्त करके चीन भेज दिया और अगस्त 1841 में सर हेनरी पोंटिगर की अध्यक्षता में एक ब्रिटेन का युद्धक जहाज चीन की राजधानी पीकिंग की ओर बढ़ा तथा उसने वहां पर गोलाबारी शुरु कर दी जिसमें चीन की हार हुई और चीन में मंचू साम्राज्य की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा और साथ में अंग्रेजों को चीन की चिन्किचियाांंग और नान किंग जैसे क्षेत्रों में भी व्यापार की अनुमति मिल गई
प्रथम अफीम युद्ध दंगल चीन युद्ध के क्या प्रभाव पड़े
प्रथम आंग्ल चीन युद्ध के परिणाम स्वरुप चीन को काफी हानि उठानी पड़े और ब्रिटेन को अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद मिली इसके महत्व परिणाम इस प्रकार है
1. चीन के आर्थिक संकट में बढ़ोत्तरी - इस युद्ध के कारण चीन का आर्थिक शोषण बढ़ गया और उसका आर्थिक कठिनाइयों और अधिक विकराल रूप लेने लगी
2. चीन के सम्मान और महत्व में कमी - अंग्रेजों और चीन के बीच संधि के कारण चीन को काफी नुकसान उठाना पड़ा और उसके सम्मान में कमी आ गई है जिससे अंग्रेजों ने और अधिक सुविधाओं के लिए चीन पर दबाव डालना शुरू कर दिया
3. चीन के सैनिक शक्ति में कमी - इस युद्ध के कारण चीन की हार हुई और उसके सैनिक कमजोर साबित हुए और इस प्रकार उसके सैनिक शक्ति में और भी दुर्बलता आ गई
4. सभी के लिए खुले द्वार की नीति - चीन के इस युद्ध के कारण चीन को दबाव में आकर इंग्लैंड के साथ साथ सभी अन्य देशों के लिए भी व्यापार के दरवाजे खोलने पड़े
5. विदेशी अधीनता को स्वीकारना - आर्थिक संकट से जूझते हुए चीन को विवश होकर कई जगह पर विदेशी अधीनता को स्वीकार करना पड़ा और चीन का गौरव मिट्टी में मिल गया
6. साम्राज्यवाद के युग की शुरुआत - इस युद्ध में चीन की हार के कारण यूरोपीय व्यापारियों की सुविधा में वृद्धि हो गई और वह और अधिक लालची हो गए और उन्होंने अपने साम्राज्य को और अधिक पढ़ाने के लिए अपने राजनीतिक और कूटनीतिक हस्तक्षेप को बढ़ा दिया
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रथम अफीम युद्ध चीन के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध हुआ और अंग्रेजो के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ जिससे उन्होंने साम्राज्यवाद को पूरा विश्व में बढ़ा ने की अपनी आकांक्षा को और बल मिला
प्रथम अफीम युद्ध या आंग्ल चीन युद्ध के कुछ मुख्य कारण
हालांकि 1839 में हुए अंग्रेज और तीनों के बीच युद्ध का अफीम के अवैध व्यापार को कारण बताया जाता है परंतु कुछ एक अन्य घटना इसके लिए जिम्मेदार थी
1. अंग्रेजों की साम्राज्यवादी लालसा - अंग्रेज व्यापारी आराम से ही साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के रहे हैं इसीलिए उन्होंने भारत पर अपना कब्जा कर लेने के बाद चीन की ओर रुख किया और वह शुरू से ही विदेशियों के साथ अपमानजनक व्यापार व्यवहार करते रहे जिसके कारण चीन के लोगों में रोष उत्पन्न हो गया
2. सभ्यताओं का आपसी संघर्ष - कुछ इतिहासकारों के अनुसार आंग्ल चीन युद्ध का कारण सभ्यताओं का आपसी संघर्ष भी था जैसे कि एशिया पश्चिम देशवासियों की तुलना में अपने आप को अधिक श्रेष्ठ मानते थे और चीन के लोग भी अपनी संस्कृति सभ्यता प्रगति सामाजिक और राजनीतिक जीवन को यूरोप में भी तुलना में श्रेष्ठ मानते थे जबकि यूरोपीय व्यापारी अपने आप को श्रेष्ठ समझते थे जिससे दोनों में टकराव होना और संभावित था
3. चीन में अफीम व्यापार के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट - ब्रिटेन के व्यापारियों द्वारा चीन में अफीम के व्यापार को बढ़ावा देने से चीन की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई और चीन के सम्राट अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए चीन ने अफीम व्यापार पर प्रतिबंध भी लगाया परंतु विदेशी नहीं माने, वह तस्करी के रूप में और अवैध रूप से अफीम का व्यापार करते रहे जिससे दोनों देशों के संबंधों में टकराव हो गया
4. आपसी अधिकार को बढ़ाने की लालसा - चीन की सरकार नहीं चाहती थी कि कोई भी विदेशी व्यापारी उनके यहां पर आकर व्यापार करें इसलिए उन्होंने अंग्रेजों को कैन्टन के बाहर ही निवास करने की इजाजत दी परंतु अंग्रेज व्यापारी खुले में चीन मेम व्यापार करना चाहते थे
5. को-हांग संस्था के अत्यधिक नियंत्रण का प्रभाव - मंचू वंश के शासन काल में चीन के व्यापारियों को विदेशी व्यापारियों से नहीं मिलने दिया जाता था और उनके बीच एक निगम स्थापित किया गया जिसे कोहांग कहा जाता है इसके अनुसार कोहांग की अनुमति और नियम व शर्तों पर ही आपसी व्यापार होता था और विदेशी व्यापारी सिर्फ अपने जहाज सिर्फ कारखाना या बाहरी ठिकानों पर ही रुक सकते थे
6. व्यापार में होने वाली कठिनाइयां - ब्रिटेन को चीन में व्यापार करने के लिए बहुत सी सुविधाएं चाहिए थी परंतु चीन के लोग समझ गए थे की खुली छूट देने से चीन को और भी आर्थिक हानि उठानी पड़ेगी
7. चीन में प्रचलित प्रथा - चीन में प्रचलित क्योंटाओ प्रथा के अनुसार किसी भी बाहरी व्यक्ति को चीन के राजा के समक्ष झुककर और उनकी प्रथा के अनुसार प्रणाम करना पड़ता था परंतु विदेशी इस प्रथा को व्यर्थ और असभ्य मानते थे तथा व्यापारियों के लिए इसका पालन करना मुश्किल था जिसके कारण आपसी टकराव शुरू हो चुका था
8. व्यापारियों पर अत्यधिक प्रतिबंध - अफीम के व्यापार के कारण चीन को अत्यधिक नुकसान हुआ था इसीलिए चीन की सरकार ने कैंटन के कमिश्नर लिन को अफीम व्यापार पर नियंत्रण के लिए नियुक्त कर दिया जिससे अंग्रेज व्यापारियों में असंतोष पैदा हो गया और 7 जुलाई 1839 को चीन और कुछ अंग्रेज नाविकों के बीच झगड़ा हो गया जिसमें अंग्रेजों ने चीन के एक नागरिक को मौत के घाट उतार दिया और इस पर कैंटीन के कमिश्नर लिन ने ब्रिटेन के व्यापारिक अधीक्षक चार्ल्स इलियट से इस घटना में संबंधित अंग्रेज व्यापारी को चीन के हवाले करने के लिए कहा परंतु इलियट ने लिन की मांग को नहीं माना और तर्क दिया कि इस के लिए अंग्रेजी व्यापारियों पर ब्रिटेन में ही मुकदमा चलेगा और आपसी झगड़े से व्यापारियों पर अत्यधिक कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए जिससे अंग्रेजी व्यापारियों को कैंटन छोड़कर मकाउ जाना पड़ा और वहां मकाउ में भी अंग्रेज व्यापारियों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई तो अंग्रेजी व्यापारियों को हांगकांग में शरण लेनी पड़ी तो उसी समय सितंबर 1839 में कप्तान स्मिथ के नेतृत्व में एक युद्ध जहाज हांगकांग पहुंच गया और इंगलैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री लार्ड पामस्टर्न ने अप्रैल 1840 में ब्रिटिश संसद में चीन के खिलाफ युद्ध के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और दोनों देशों के बीच शुरू हो गया जिसे प्रथम अफीम युद्ध या प्रथम आंगल चीन युद्ध के नाम से जाना जाता है
प्रथम अफीम युद्ध की महत्वपूर्ण घटनाएं
1. पहली लड़ाई - प्रथम अफीम युद्ध की शुरुआत कैंटन से हुई जिसमें ब्रिटेन की सेना ने चीन पर आक्रमण कर कैंटन पर अधिकार कर लिया और कैंटीन के कमिश्नर लिन को अपदस्थ कर दिया तब मंजू वंश के अधिकारी चीशान को ब्रिटेन के व्यापारियों से वार्ता करने के लिए नियुक्त किया
चीन और इंग्लैंड के बीच एक संधि हुई जिसमें
1. हांगकांग बंदरगाह को अंग्रेजों के लिए खोल दिया गया
2. चीन ने अफीम के नुकसान के लिए इंग्लैंड के व्यापारियों को 60 लाख देना स्वीकार किया
3. अंग्रेज प्रतिनिधियों को चीन के प्रतिनिधियों के बराबर मान्यता दी गई
4. अन्य क्षेत्रों में भी अंग्रेज व्यापारियों को आने-जाने जाने की अनुमति दे दी
2. दूसरी लड़ाई - प्रथम अफीम युद्ध होने के बाद अंग्रेजों ने कुछ सुविधाएं प्राप्त कर ली परंतु अंग्रेज व्यापारी इससे संतुष्ट नहीं हुए और ब्रिटिश सरकार ने अधीक्षक इलियट को वापस बुला लिया और उसी स्थान पर सर हेनरी पोंटिगर को मुख्य प्रतिनिधि नियुक्त करके चीन भेज दिया और अगस्त 1841 में सर हेनरी पोंटिगर की अध्यक्षता में एक ब्रिटेन का युद्धक जहाज चीन की राजधानी पीकिंग की ओर बढ़ा तथा उसने वहां पर गोलाबारी शुरु कर दी जिसमें चीन की हार हुई और चीन में मंचू साम्राज्य की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा और साथ में अंग्रेजों को चीन की चिन्किचियाांंग और नान किंग जैसे क्षेत्रों में भी व्यापार की अनुमति मिल गई
प्रथम अफीम युद्ध दंगल चीन युद्ध के क्या प्रभाव पड़े
प्रथम आंग्ल चीन युद्ध के परिणाम स्वरुप चीन को काफी हानि उठानी पड़े और ब्रिटेन को अपना साम्राज्य बढ़ाने में मदद मिली इसके महत्व परिणाम इस प्रकार है
1. चीन के आर्थिक संकट में बढ़ोत्तरी - इस युद्ध के कारण चीन का आर्थिक शोषण बढ़ गया और उसका आर्थिक कठिनाइयों और अधिक विकराल रूप लेने लगी
2. चीन के सम्मान और महत्व में कमी - अंग्रेजों और चीन के बीच संधि के कारण चीन को काफी नुकसान उठाना पड़ा और उसके सम्मान में कमी आ गई है जिससे अंग्रेजों ने और अधिक सुविधाओं के लिए चीन पर दबाव डालना शुरू कर दिया
3. चीन के सैनिक शक्ति में कमी - इस युद्ध के कारण चीन की हार हुई और उसके सैनिक कमजोर साबित हुए और इस प्रकार उसके सैनिक शक्ति में और भी दुर्बलता आ गई
4. सभी के लिए खुले द्वार की नीति - चीन के इस युद्ध के कारण चीन को दबाव में आकर इंग्लैंड के साथ साथ सभी अन्य देशों के लिए भी व्यापार के दरवाजे खोलने पड़े
5. विदेशी अधीनता को स्वीकारना - आर्थिक संकट से जूझते हुए चीन को विवश होकर कई जगह पर विदेशी अधीनता को स्वीकार करना पड़ा और चीन का गौरव मिट्टी में मिल गया
6. साम्राज्यवाद के युग की शुरुआत - इस युद्ध में चीन की हार के कारण यूरोपीय व्यापारियों की सुविधा में वृद्धि हो गई और वह और अधिक लालची हो गए और उन्होंने अपने साम्राज्य को और अधिक पढ़ाने के लिए अपने राजनीतिक और कूटनीतिक हस्तक्षेप को बढ़ा दिया
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रथम अफीम युद्ध चीन के लिए बहुत ही हानिकारक सिद्ध हुआ और अंग्रेजो के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ जिससे उन्होंने साम्राज्यवाद को पूरा विश्व में बढ़ा ने की अपनी आकांक्षा को और बल मिला
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